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Resurging Hinduism


आओ दोस्तो आज सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म पर थोड़ी चर्चा करते हैं | संदेश थोड़ा लंबा है मगर समय निकाल कर पूरा संदेश ज़रूर पढ़ना |

साथियों भारत मे घटती हिंदू अवादी और हिंदू धर्म मे कम होती जा रही आस्था का आख़िर क्या कारण है? मैने ये कम होती हुई आस्था वाली बात सिर्फ़ भारत के सन्दर्भ मे ही कही है क्यूंकी विदेशों मे तो आज भी सनातन धर्म सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है और बड़ी ही तेज़ी के साथ बढ़ रहा है | हम भारत वासी अपनी परंपराओं को भूलते जा रहे हैं और विदेशी अपनाते जा रहे हैं | क्या कारण है के आज ज़्यादातर हिंदुओं को ये भी समझ नही के भगवान के पुराने चित्रों और पुरानी मूर्तियों का क्या करना चाहिए, उन्हें कहाँ रखना चाहिए? हमारी पूजा विधि कैसी होनी चाहिए? हिंदू होने के नाते हमारे मौलिक संस्कार क्या हैं?

लोग चन्द पैसे देकर भगवान की तस्वीर या मूर्ति खरीद लाते हैं | घर में साल-दो साल उसकी पूजा-अर्चना करते है और फिर किसी रोज दीवाली से पहले उसे किसी पीपल के पेड़ की जड़ में या घर के बाहर या रोड के किनारे कही भी रख आते है | शायद यही सोचकर के लो भगवान अब आप पुराने हो गये हो, आपके लिए अब हमारे घर में कोई जगह नही, कृपया अब आप यहीं विश्राम करें हम बाजार से आपकी नयी फोटो ले आए है | और अगले ही दिन से भगवान की नयी फोटो की तो मौज शुरू हो जाती है और पुरानी वाली प्रतिमा की क्या हालत होती है आप सब अच्छी तरह जानते हो | सड़क से उड़ने वाली धूल, बारिश की बूँदों और हवाओं का ज़ोर उस प्रतिमा का वो हालत कर देता है के बस पूछिए मत और यही हाल भगवान की उन प्रतिमाओं और फोटो का भी होता है जिन्हें आप लोग जागरण और भंडारों के बैनर और दुकान के साइन बोर्ड पर छपवा लेते हैं |
मगर अब आप कहोगे के उससे क्या फ़र्क पड़ता है? तो सुनो फ़र्क तो पड़ता है जब भगवान का घर टूटा पड़ा हो और आप आराम से अपने आलीशान बंगले मे बैठे हो | फ़र्क पड़ता है जब शाम को मंदिर मे अंधेरा पड़ा हो और आप अपने घर मे हर महीने 1 किलो देसी घी और 2 किलो रिफाइंड ख़तम कर दो | फ़र्क पड़ता है जब आप खुद नहा धोकर मंदिर जाओ और भगवान की प्रतिमा को गंदा करो, उनके मुँह मे ज़बरदस्ती प्रसाद ठूँसो, उनका हाल बहाल कर दो | दोस्तों बहुत फ़र्क पड़ता है | जब कोई चीज़ हमे अच्छी नही लगती तो उससे हमारे अंदर उसके प्रति एक नेगेटिविटी आती है और हम अंजाने मे ही उससे दूरी बनाने लगते हैं | जब कोई चीज़ हमे अच्छी लगती है तो उससे हमारे अंदर एक पॉज़िटिव इंपॅक्ट होता है और अनायास ही उसकी तरफ आकर्षित होते है | ये फैक्ट है लेकिन हमने इस फैक्ट को नही जाना और ना ही कभी समझने की कोशिश की | मगर हमारा मीडीया और हमारा बॉलीवुड इस बात को भली भाँति समझता है और निरंतर अपने काम पर लगा है | और जब कोई इतनी मेहनत और लगन से अपना काम करेगा तो उसे कामयाबी मिलना भी स्वाभाविक है.

यहाँ मे फसेबुक- वॅट्सआप के एक वाइरल मेसेज को शेयर करना चाहता हूँ | बॉलीवुड और टीवी सीरियल के ज़रिए कैसे हिंदू को रेप्रेज़ेंट किया जाता है और कैसे हमारा ब्रेन वॉश करके हमारे अंदर हीनता का भाव पैदा करने की कोशिश की जाती है |
# ब्राह्मण - ढोंगी पंडित, लुटेरा या बलात्कारी |
# क्षत्रिय/राजपूत - अक्खड़, मुछड़, क्रूर या बलात्कारी |
# वैश्य/साहूकार - लोभी, कंजूस या बलात्कारी |
# दलित - भीख माँगने वाला, दूसरी हिंदू कम्यूनिटी द्वारा सताया हुआ | सताए जाने पर मुस्लिमों दूरा सहायता, आख़िरकार हिंदू धर्म से तोड़ने की कोशिश |
# सिख - जोकर आदि बनाकर मज़ाक उड़ाना |
# मुस्लिम - अल्लाह का नेक बंदा, पाँच वक़्त का नमाज़ी, साहसी, वचनबद्ध, हीरो हेरोइन की मदद करने वाला, टिपिकल रहीम चाचा या पठान |
# ईसाई - जीसस का पुनर्जन्म जैसा प्रेम, अपनत्व, हर बात पर क्रॉस बनाकर प्रार्थना करते रहना |

क्या हम जानते हैं के 2016 तक 4.5 बिलियन यू एस $ की ये बॉलीवुड इंडस्ट्री सिर्फ़ हमारे धर्म, समाज और संस्कृति पर घात करने का सुनियोजित षड्यंत्र है और वो भी खुद हमारे ही पैसे से? एक काल्पनिकता का डिसक्लेमर देकर ये हमारे इतिहास के साथ हमारी, आस्था और विश्वास के साथ जी भरके खिलवाड़ करते हैं | रानी पद्मावती पर मूवी बनाने वालो अगर तुम दोगले नही तो कभी मोहम्मद और आयशा पर भी फिल्म बनाकर दिखा दो--- पेंट गीली हो जाएगी तुम्हारी और दोबारा कभी अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर भोंकने लायक नही बचोगे |
ऐसे ही षडयंत्रों के फलस्वरूप आज हमारी परंपराएँ भी बड़ी तेज़ी से बदलती जा रही हैं | एक बड़ा अजीब प्रचलन शुरू हुआ है के लोग अब पैर छूने के बजाय सिर्फ़ घुटने ही छूने लगे हैं ये अलग बात है के उनमे से कुछ लोगो को ये डर लगा रहता है कहीं ज़्यादा झुकने से उनकी लो वेस्ट जीन्स ना निकल जाए; वरना ज़्यादातर लोगों को तो यही लगता है के पैर छूना बड़ा इनसल्टिंग है and its a very old fashion too but we are the new generation so we must have to maintain some generation gap and a difference too otherwise how come the world will know that we are an advanced society.

साथियों एक और बहुत बड़ी समस्या है हम हिंदुओं के बीच वो है हमारे बच्चों का नामकरण | कैसे-कैसे अजीब नाम रखते हैं... छोटू-मोटू, गोलू-सोलू, ठिंकू-सिंकू, सोनू-मोनू, हानी-पेनी, रिंकी-सींकी और ना जाने क्या-क्या | विदेशों मे ऐसे नाम कुत्ते- बिल्लियों के रखे जाते है इंसानो के नही | अब कुछ लोग कहेंगे के नाम मे क्या रखा है? तो मेरी उनसे रिक्वेस्ट है एक बार अजामील की कहानी ज़रूर पढ़ें सारी बात खुद ही समझ आ जाएगी | समझदार हिंदू लोग अपने बच्चों के नाम भगवान के नाम पर या उपनाम पर रखते थे ताकि इसी बहाने वो बार-बार भगवान का नाम ले सकें | अगर फ़र्क ही समझना है तो कभी अपने पड़ोस मे रहने वाले मुसलमानो के बच्चों से उनके नाम पूछ कर देखना सब समझ मे आ जाएगा | हमारे बच्चों के नाम शुद्ध सनातनी और दमदार होने चाहिए | क्यूंकी नाम का फ़र्क बच्चे के चरित्र पर भी पड़ता है | कहीं रामायण या महाभारत काल मे किसी का ऐसा नाम सुना था? नही ना | जब मुगलों और अँग्रेज़ों ने कुछ हिंदुओं को गुलाम बनाया तो सबसे पहले उनका धर्म बदलना चाहा जिसका धर्म बदलना मुश्किल हुआ उसका नाम बदल दिया | शहरों और गाँवों के नाम बदले और 5 - 600 साल की गुलामी हमे उसकी आदत हो गयी और आज हम खुद ही बड़े गर्व से ऐसे ही नाम रख लेते हैं | अगर नाम से कोई फ़र्क नही पड़ता तो करणावती का नाम बदलकर अहमदाबाद ना होता, प्रयाग का नाम बदलकर अल्लहबाद ना होता, संभाजी नगर आज औरंगाबाद ना होता, आनंद नगर अहमद नगर ना होता, और भाग्य नगर हैदराबाद ना होता और साथियों अयोध्या मे राम मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद ना होती क्यूंकी उस मस्जिद मे नमाज़ तो होती ही नही बस बाबर का नाम ही तो चलता है |

आजकल सत्संग करने का और सत्संग अटेंड करने का प्रचलन भी बड़े जोरो पर है | क्या लगता है लोग सिर्फ़ अपने आत्मिक कल्याण के लिए जाते हैं? नही! उनमे ज़्यादातर लोग अपने लालच और स्वार्थ सिद्धि के लिए जाते हैं | उन्हे बाबा जी मे अगाध विश्वास है क्यूंकी जो कुछ उन्हें भगवान की पूजा करने से नही मिला, उनके जो दुख ईश्वर भी ना दूर कर पाया वो दुख-दर्द उन बाबा जी की शरण मे आने से ठीक हो जाते हैं | चाहे सत्संग मे बाबा जी कितनी बार बोलें के मै कोई भगवान नही हूँ पर फिर भी पूजा घर मे जहाँ सिर्फ़ भगवान का स्थान होना चाहिए वहाँ बाबा जी को भी रखेंगे और कई जगह तो हाल इससे भी बदतर है, लोग भगवान की प्रतिमा को हटाकर सिर्फ़ बाबा जी को ही पूजने लगते हैं | हद कर रखी है साथियों !!

मैने बचपन मे कहीं पढ़ा था के जो व्यक्ति भगवान मे, साधु-संतों मे और वेद पुराणो मे विश्वास करता है उससे कभी पाप नही हो सकते | बिल्कुल सही बात है और हम साधु-संतों की इज़्ज़त भी करते हैं | लेकिन वास्तव मे तो हम उस भगवा लिवास की इज़्ज़त करते हैं जिसे पहन कर हमारे महापुरुषों ने बड़े-बड़े महान कार्य किए | जिस भगवा को पहन कर उन्होने सनातन धर्म और हमरे देश को गौरवान्वित किया | मगर आज उस भगवा को बदनाम करने की साजिशें की जा रही हैं | कुछ तो नकली साधु-संतों ने, दोगले बुद्धजीवियों ने और कुछ इस देश के दोगले मीडीया ने हमारा बहुत नुकसान किया है | साथियों अब समय आ गया है के हम ऐसे ढोंगियों का और दोगले मीडीया का पूर्णतया वहिष्कार करें और उनके अंधभक्तों तक भी ये संदेश पहुँचाएँ ताकि उनकी आँखें खुलें और सत्य को जान पाएँ |

कुछ लोगों को तो ये भी समझ नही है के लाफिंग बुद्दा को पूजा घर मे नही रखते | अगर पढ़े-लिखे ख़ासकर मिड्ल क्लास और उससे उपर के लोगों के घर जाकर देखो तो आपको भगवान की कोई मूर्ति मिले ना मिले पर उनके घर मे सांई या लाफिंग बुद्दा का एक कार्टून ज़रूर मिल जाएगा | कामकाजी लोग भी ऐसे कार्टून्स को अपनी डेस्क पर सहेज कर रखते हैं और उनसे पूछो तो बताएँगे के इसे देखने से हमे खुशी मिलती है | लेकिन मै कहता हूँ के हाँ बेशक मिलती होगी मगर परमानंद तो नही मिलता |

साथियों बस यही चीज़ हमे समझने की ज़रूरत है | आज हम परमानंद और मोक्ष को भूलकर क्षणिक सुखों मे ही खुश हैं | आज हम अपनी पुरानी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों को छोड़कर मॉडर्न एज के वाहियात रीति रिवाजों मे ही खुश हैं | आज हम अपनी आँखों पर पट्टी बाँधकर आधुनिकता की दौड़ मे बस भागे जा रहे हैं | ये अलग बात है के हममे से कई को तो कभी ठोकर भी नही लगती मगर इसका मतलब ये तो नही के हम एक सही दिशा मे ही जा रहे हों? हो सकता है आगे जाकर हम किसी ऐसे गर्त मे गिरें जहाँ से निकल पाना संभव ही ना हो और पछताने के लिए समय भी ना मिले |

आज हमारे ज्ञान, समझ और नैतिकता का स्तर इतना गिर गया है के हम सत्य को जानना भी ज़रूरी नही समझते | कुछ लोगों के लिए तो ज्ञान-ध्यान और धर्म की बात करना सिर्फ़ समय की बर्बादी है | आख़िर क्यूँ हमे वो सब नही पता जो बहुत ही बेसिक सी चीज़ है और स्वत: ही समझ लेनी चाहिए | हर बात मे लॉजिक लगाने वाले लोग आज बहुत ही इल्लॉजिकल हो गये हैं | अब से 20-30 साल पहले की बात करो तो हर घर मे व्यस्क लोग ख़ासकर हमारे दादा-दादी के लिए मुक्ति और मोक्ष की बातें, रामायण और महाभारत की बातें बड़ी ही सामान्य थी और दिन भर मे ना जाने कितनी बार लोग इसकी चर्चा करते थे | मगर आज हमारे घरों मे बातें होती है:- टीवी सीरियल्स की, फिल्मों की, फ़ेसबुक और व्हाट्सएप की | एक महान व्यक्तित्व बनने के ख़याल से भी कोसों दूर आज का युवा बस सेल्फी लेकर ही खुश है | साथियो आख़िर कमी कहाँ रह गयी है? सनातन धर्म जो सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म चीज़ को जानने-समझने की क्षमता रखता है आज उसके अनुयायी इतने उदासीन कैसे हो सकते हैं के उनके धर्म पर हो रहे अत्याचार और षडयंत्रों को वो पहचान नही पाते?

भारत के हिंदुओं का जितना नुकसान इस दोगले सेकूलरिज़्म और मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम से हुआ है शायद ही किसी दूसरे कारण से हुआ होगा चाहे वो विदेशी आक्रांताओं का कहर हो या देश की आज़ादी के वक़्त का गदर | इस सेकूलरिज़्म और हमारे धर्म के प्रति हमारी उदासीनता ने आज हमे एक ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ हम ये तय नही कर पाते हैं के सही रास्ता कौन सा है? आस्था के सन्दर्भ मे भी हमारा हिंदू समाज दो से तीन हिस्सों मे बँटा हुआ है | हमारा एकजुट होना मुश्किल ही नही असंभव सा लगता है | हमारे धर्म और हमारे कर्तव्यों के प्रति हमारी संवेदनहीनता ही हमारे विनाश का कारण बनती जा रही है |

हम अपने बच्चों को गीता नही पढ़ने देते, वेदो का अध्ययन नही करने देते क्यूंकी वो जॉब ओरियेनटेड नही है और शायद डरते भी है कहीं वो सन्यासी ना बन जाए और घर वार ना छोड़ दें, और इस तरह हमारी वंशावली ना ख़त्म हो जाए | ज़रा सोचिए दोस्तों जिस गीता का जन्म ही एक भीषण कर्म भूमि मे हुआ हो जो आरंभ से अंत तक सिर्फ़ कर्म करने की ही शिक्षा देती हो और अंतत: अर्जुन को निष्काम कर्म करने के लए प्रेरित करने मे सफल भी होती है वो कैसे किसी को निष्क्रिए या व्यवहारिक समाज से अलग कर सकती है?

एक मुस्लिम का बच्चा मदरसे जाता है, जो स्कूल जाता है वो भी स्कूल टाइम के बाद मदरसे जाता है और कम से कम हफ्ते मे एक दिन अगर पाँच वक़्त भी नही तो दो वक़्त की नमाज़ पढ़ने मस्जिद भी जाता है | एक क्रिस्चियन भी ये सुनिश्चित करता है के उसके घर का हर सदस्य नियमित रूप से बाइबिल पढ़े और संडे को चर्च जाए | लेकिन कोई बताएगा की हम और हमारे बच्चे कब-कब मंदिर जाते हैं और हमे क्या पढ़ाया जाता है? मै बताता हूँ - हमे पढ़ाया जाता है के हमे किस-किसने और कब-कब लूटा, किसने और कब-कब हमारी माताओं, बहनो और बेटियों को बेइज्जत किया, किस-किसने हमपर कितने साल शासन किया | आख़िर क्यूँ नही पढ़ाया जाता हमे अगर नही पढ़ाया जाता तो कब पढ़ाया जाएगा के मुगलों और अंगरेंजों की दासता के अलावा भी हमारा हज़ारों साल पुराना एक गौरवशाली वैदिक इतिहास भी है | ये सनातन धर्म किन-किन वीरों के खून से सींचा गया, किन-किन महापुरुषों और महाऋषिओं के ज्ञान से फलीभूत हुआ है? किस-किसने अपना निजी स्वार्थ और अच्छा भला साम्राज्य छोड़कर हमारे लिए अपना सब कुछ त्याग दिया था? कौन और कब पढ़ाएगा हमे?

हमे क्यूँ नही पढ़ाया जाता के एक समय था जब चरित्र और धर्म सर्वोपरि था आज की तरह पैसा नही | जब दुनिया मे लोगों को पढ़ना लिखना भी नही आता था और हमारे पूर्वज वेदों-शास्त्रों और उपनिषदों की रचना कर चुके थे | दुनिया जानती भी नही थी की शिक्षा क्या है और हमारे यहाँ गुरुकुल चलाए जाते थे | दुनिया के सबसे बड़े विश्व विद्यालय हमारे यहाँ थे | आज करोड़ों-अरबो रुपये खर्च करके ब्रह्मांड के जिन रहस्यों को जानने की कोशिश की जाती है वो अब से हज़ारों साल पहले हमारे महाऋषि जानते थे |

बहुत कम ही लोग जानते होंगे के 12वी शताब्दी मे बना कंबोडिया का अंगकोरवाट मंदिर जो दुनिया मे सबसे बड़े मंदिरों मे गिना जाता है, सिर्फ़ भारत के व्यापारियों के टैक्स से बना है | ये थी कभी हमारी एकॉनमी ऐसा था हमारा ट्रेड | हम दुनिया की नंबर एक अर्थव्यवस्था रह चुके हैं | और ये तब की बात है जब ये दोगला सेकूलरिस्म नही था | ये आलसी और निकम्मे लोगों को खुश करने वाला स्वार्थी और लालची लोगों के द्वारा कॉपी-पेस्ट किया हुआ संविधान नही था | जब राजतंत्र था ये प्रजातंत्र का ढकोसला नही था जिसे बनाने के लिए इलेक्सन के नाम पर बाज़ार लगते है | जिसमे वोटर हो या कॅंडिडेट सब बिकते हैं बस कीमत सही होनी चाहिए | ये प्रजातंत्र जहाँ ग़रीब और राष्ट्रहित की योजना बनाने के लिए भी सरकार को उन सबके भी हाथ-पाँव जोड़ने पड़ते हैं जिनके गाल पर थप्पड़ मारना चाहिए |

ये हमारे संविधान की विफलता ही है के एक ग़रीब का हक़ भी एक जाती विशेष को दे दिया जाता है | एक बलात्कारी को मृत्युदंड देने के बजाय उसे सिलाई मशीन देकर पुरुषकृत किया जाता है | ये हमारे संविधान की विफलता और हमारी संवेदनहीनता ही है के संसद मे एक आदमी भगवान राम को गाली देकर भी सही सलामत बच जाता है | ये हमारे सिस्टम की विफलता ही है के एक अपराधी को कोर्ट मे पेश होने से पहले ही जमानत मिल जाती है | ये संविधान की विफलता ही है के ये जानकर भी के राम मंदिर को तोड़कर ही मस्जिद बनाई गयी थी, और बाबरी मस्जिद आज भी सलामत खड़ी है और हम अपने सेकूलरिस्म की दुहाई देकर अपने रूठे हुए फूफों को मानने की कोशिश मे लगे हैं | और कितनी विफलताएँ गिनाऊ साथियो मन दुखी होता है और हृदय विचलित होता है ये जानकार के इस सिस्टम को किस बेबकूफ़ ने बनाया है और क्यूँ इसे बदला नही जा सकता?

हमे हमारा गौरवशाली इतिहास तो पढ़ाया ही नही जाता और हमे भी इससे कोई फ़र्क नही पड़ता क्यूंकी इस ओर कभी हमारा ध्यान ही नही जाता | और कभी ध्यान जाए भी तो कौन ख़ामा-ख़ाँ टेंशन ले | साथियों जब हम ऐसे ही अपनी परंपराओं के प्रति, अपने धर्म और आस्था के प्रति उदासीन बने रहेंगे तो इसका ख़ामियाजा भी हमे ही भुगतना पड़ेगा | ये अलग बात है के हमारी आने वाली नस्ल को हमसे ज़्यादा भुगतना पड़े |

ये हमारी संवेदनहीनता ही है के एक फिल्म मे सरेआम हमारी आस्थाओं का मखोल उड़ाया जाता है तो उसका विरोध करने के बजाय हम दाँत फाड़-फाड़कर हंसते है | अगर हम ऐसे ही संवेदनहीन बने रहे तो लॉ & ऑर्डर किसके पक्ष मे काम करेंगे ये सुप्रीम कोर्ट तय करेगा ना की हम, और सेन्सर बोर्ड मे बैठे लोग ये सब तय करेंगे के क्या हमारी आस्था को चोट पहुँचता है और क्या नही | फिर ऐसा ही होगा के ताजमहल पर नमाज़ तो पढ़ी जा सकती है मगर आप कीर्तन करना तो दूर भगवा पहनकर नही जा सकते | महादेव पर कितना दूध चढ़ेगा या फिर चढ़ेगा भी या नही ये सुप्रीम कोर्ट तय करेगा हम नही | दीवाली पर पटाखे जलेंगे या नही ये सुप्रीम कोर्ट तय करेगा हम नही | मंदिरों के लाउडस्पिकर्स से तो शोर होगा मगर मस्जिद के लाउडस्पिकर्स से नही | शहरो और कस्बों की म्यूनिसिपॅलिटीस सार्वजनिक गंदी जगहों पर सिर्फ़ तुम्हारे ही देवी-देवताओं के पोस्टर्स और प्रतिमाएँ लगाएँगी मक्का-मदीना या कावा की नही | किसी होली क्रॉस या जीसस की नही क्यूंकी सिर्फ़ तुम लोग ही मूर्ख हो गंदगी फैलाते हो दूसरे धर्मों के लोग नही |

दरअसल इसमे आपकी भी कोई ग़लती नही क्यूंकी आपको इन सब बातों की समझ ही नही | हाँ हमे कई बातों की समझ नही है जैसे- हमारी बहन-बेटियाँ लवजिहाद की शिकार हो रही हैं और हम मे से कुछ को तो पता भी नही के लवज़िहाद क्या है? कई और भी ऐसे जिहाद है जैसे बॉलीवुड जिहाद, फ़ेसबुक जिहाद, व्हाट्सएप जिहाद और ट्विटर जिहाद |

हम अपने-अपने निजी स्वार्थों मे लिप्त हुए अपने-अपने ऐशो-आराम मे मौज लेते हुए आज इतने स्वार्थी और मक्कार हो गये है के सार्वजनिक हित और सामूहिक विकास हमारी समझ मे ही नही आता | देश हित और धार्मिक उत्थान की बात करने वाला हमे बेवकूफ़ लगता है | हम हर ओर से संवेदनहीन होकर अपनी मौलिक ज़िम्मेदारियों से भागते जा रहे है | हम ज़िंदगी की इस बेतुकी दौड़ भाग मे भागने मे बहुत माहिर हो चुके है | तो ठीक है भागो.....

कल हमे कश्मीर से भगाया गया, आज आसाम और बंगाल से भगाया जा रहा है और कल देश के अलग-अलग हिस्सों से भी भागेंगे | अगर हम ऐसे ही भागते रहे और ऐसे ही अपने धर्म और आस्था के प्रति संवेदनहीन बने रहे तो किसी दिन इस देश के मिलॉर्ड ये भी तय करेंगे के ये देश हमारा है भी या नही | अपने ही देश मे शरणार्थी की ज़िंदगी जियेंगे हम | ये सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारी संवेदनहीनता ही है के हमारे धार्मिक मामलों मे हस्तक्षेप करने की तो मिलॉर्ड और दोगले बुद्धिजीवियों मे हिम्मत है मगर दूसरे धर्मो के बारे मे नही | देश मे रोहिंगिया मुस्लिम रहेंगे या नही ये सब तय करने के लिए मिलॉर्ड के पास वक़्त होगा पर कश्मीरी पंडितों के पुनर्वसान की याचिका सुनने के लए नही |

साथियों अगर हम ऐसे ही सेक्युलर और संवेदनहीन बने रहे तो हमारे बच्चे हमसे भी गये गुज़रे होंगे | फिर ऐसे ही संवेदनहीन बच्चों मे से बड़े होकर कुछ दोगले बुद्धजीवी बनेंगे | कन्हैया जैसे नाकार बनेंगे | फिर वो दोगले बुद्धिजीवी सरकार के खिलाफ जाकर सुप्रीम कोर्ट में घुसपैठियों की वकालत करेंगे और सुप्रीम कोर्ट भी सरकार विरोधी गतिविधियां को अप्रूव कर देगा! आज के ये जज और मक्कार बुद्धिजीवी कौन हैं? ये सब ऐसे ही उदासीन और सेक्युलर परिवारों से आए हुए हिंदू हैं जो हिंदू होकर भी हिंदुत्व को ही शर्मसार करते हैं | यह भूषण, सिब्बल, सिंघवी और इनको सुनने वाले सुप्रीम कोर्ट के खानदानी संभ्रांत लोग और उनकी दलाली करने वाले अरबपति गागरिका, चरखा दत्त, खाजदीप और रैवीज जैसे मीडिया के लोग सब किसी ना किसी राजनैतिक घराने के दलाल है! साथियों आज न्यायपालिका भी शक के दायरे मे है क्यों? क्योंकि कोर्ट के कुछ निर्णय बहुत ही पक्षपातपूर्ण रहे हैं |

साथियों मे आपको उकसाने या भड़काने की कोशिश नही कर रहा बल्कि आपकी अंतरात्मा को जगाने की कोशिश कर रहा हूँ | मै ये नही चाहता के आप ये सब सुनकर जोश मे आओ और लॉ & ऑर्डर की अनदेखी करो और देश मे अव्यवस्था फैलाओ | दोस्तो आज इस सेकूलरिस्म को रिडिफाइन करने की सख़्त ज़रूरत है, वरना आने वाली पीढ़ियाँ हमे कभी माफ़ नही करेंगी | साथियों हमारे पूर्वजों का बलिदान व्यर्थ नही जाना चाहिए, विवेकानंद का तप और हिंदू धर्म के लिए समर्पित उनका जीवन व्यर्थ नही जाना चाहिए | मुझे आपके धैर्य और धीरज की आवश्यकता है | इस जात-पात, ऊँच-नीच, छुआ-छूत और भेद-भाव के घिनोने दलदल से बाहर निकलो | हर एक बात को राजनैतिक नज़र से मत देखो | हमारी सोच, हमारी राय अलग हो सकती है, हमारी जाती, हमारे तौर तरीके अलग हो सकते हैं | कई विषयों पर हमे आपस मे मतभेद भी हो सकते हैं पर जब धर्म पर आँच आए तो हम सिर्फ़ हिंदू है सिर्फ़ हिंदू और कुछ नही|

हमे एक स्ट्रॅटेजिक तरीके से काम करना है | हमे अपने ऊपर काम करना है, हमे अपनो के ऊपर, अपने सगे संबंधियों के ऊपर काम करना है | हमे अपने आस-पड़ोस और अपने संपूर्ण हिंदू समाज पे काम करना है | हमे अपने बच्चों के मन मे आस्था और विस्वास का, श्रद्धा और धर्म परायणता का ऐसा बीज बोना है जो आने वाले समय मे स्वत: ही फूले-फले, किसी और को उसे जगाने की ज़रूरत ही ना पड़े | हमारी बहन-बेटियाँ किसी छदम लव ज़िहाद का शिकार ना हो | साथियों ये दो चार दिन की बात नही है | अगर हम आज ही से काम पे लग जाएँ तो कम से कम 20 साल लग जाएँगे हमे हमारा पुराना गौरव प्राप्त करने मे | हमे, हमारे बच्चों को, दोस्तों को, सगे संबंधियों को हमारे पूरे हिंदू स्माज को ये समझ होनी चाहिए के हम आख़िर कर क्या रहे हैं और हमे क्या और कैसे करना चाहिए?

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